Sunday 2 October 2011

Arihant Bhagawan's Extreme Through Deity And Pratihary

अरिहंत भगवान के 14 देवकृत अतिशय होते है |
  1. अर्द्धमागधी भाषा होती है |
  2. समस्त जीवो ने परस्पर मित्रता होती है |
  3. दिशा मे निर्मलता आ जाती है |
  4. आकाश स्वच्छ हो जाता है |
  5. सभी ऋतु के फूल - फल एक समय पर उगना |
  6. 1 योजन तक पृथ्वी दर्पण की भाति होना |
  7. भगवान जब चलते है तब पैर के नीचे 225 कमलों की रचना होना |
  8. मन्द-मन्द सुगंधित हवा चलना |
  9. आकाश मे जय-जय ध्वनि होना |
  10. भगवान जब चलते है तब मेघकुमार के देव उनके आगे गंधोदक की वृष्टि करते है |
  11. पवन कुमार देव द्वारा भूमि कांटे, कंकर रहित होना |
  12. सभी जीवो में परमानंद होना |
  13. भगवान के आगे धर्मचक्र चलना |
  14. अष्टमंगल का साथ में चलना | अष्टमंगल 8 होते है | छत्र, चवर, ध्वज, भ्रुंगार, कलश, दर्पण, पंखा, सिंहासन
अरिहंत भगवान के 8 प्रातिहार्य होते है |
  1. अशोक वृक्ष होना |
  2. रत्नमय सिंहासन होना |
  3. भगवान के मस्तक पर तीन छत्र होते है |
  4. भगवान के पीछे भामंडल होता है |
  5. दिव्या ध्वनी खिरना |
  6. देवो के द्वारा पुष्प वृष्टि |
  7. 64 चमरो का ढुरना |
  8. दुंदुभी बाजे बजाना |

Arihant Bhagawan's Extreme Of Perfect knowledge And Infinity Tetard

अरिहंत भगवान के  केवलज्ञान के बाद 10 अतिशय होते है |

  1. भगवान के 400 कौश तक सुभिक्षता रहती है |
  2. भगवान  गगन-गमन करते है ( भगवान जमीन से थोडा ऊपर चलते है ) |
  3. अप्राणीवध होता है ( भगवान से किसी भी प्राणी का धात नहीं होता ) |
  4. भोजन नहीं करते |
  5. अपसर्ग नहीं होता है |
  6. समवशरण में चारो दिशा में मुख दिखाना |
  7. समस्त विद्याओ का अधिपति होना |
  8. भगवान की छाया नहीं पड़ती है |
  9. भगवान की पलके नहीं  झपकती |
  10. भगवान के नाखू और बाल नहीं बढ़ते है  |
अरिहंत भगवान के  4 अनंत चतुष्टय होते है |
  1. अनंत दर्शन
  2. अनंत ज्ञान 
  3. अनंत सुख
  4. अनंत वीर्य  ( अनंत शक्ति होती है )

Wednesday 28 September 2011

Arihant Bhagawan's Extreme Of Birth

अरिहंत भगवान के 10 जन्म  के अतिशय होते है |
  1. अरिहंत भगवान का शरीर पसीना रहित होता है |

  2. अरिहंत भगवान का शरीर अत्यंत सुन्दर होता है |

  3. अरिहंत भगवान के खून का रंग सफ़ेद होता है क्युकी उनके अंदर करुणा होती है | 

  4. अरिहंत भगवान के शरीर में 1008 लक्षण होते है |

  5. अरिहंत भगवान का शरीर सुगंधित होता है |

  6. अरिहंत भगवान का शरीर समचतुर्स्त्र संस्थान होता है मतलब की शरीर के कोई भी अंग छोटे बड़े नहीं होते है |

  7. अरिहंत भगवान का शरीर वज्रवृषभ नाराच संहनन होता है मतलब की शरीर वज्र जैसा कढोर होता है, जो पर्वत को भी नहीं हिला सकता |

  8. अतुल्य बल होता है |

  9. हित-मित-प्रिय  वचन होते है |

  10. मल-मूत्र रहित शरीर होता है |

Tuesday 20 September 2011

Gyanodaya Jain Pathsha's Dress Compition During parushan Parv



इस विडियो से हमें ये सिखाने मिलता है की हमें आलू , प्याज, लहसन जैसे कंदमूल नहीं खाने चाहिये, क्युकी उसमे बहुत सारे जीव होते है और इसी चीजे खाने से हमारा क्रोध भी बढ़ता है |

Sunday 28 August 2011

About Bhagawan Mahavir

 भगवान  महावीर 24 वे तीर्थंकर है | उनका चिन्ह सिंह है |

भगवान  महावीर का जन्म कुण्डलपुर में हुआ था |

भगवान  महावीर की माता का त्रिशला है और उनका दूसरा नाम प्रियकरिणी है |

भगवान  महावीर के पिता का नाम सिद्धार्थ है |

भगवान महावीर के पांच नाम है | वर्धमान, वीर, महावीर, अतिवीर, सन्मति |

भगवान महावीर का जन्म चैत्र सुदी तेरश को हुआ था |

हाथी को वश में वश करने के कारण वर्धमान का नाम महावीर पड़ा |

संजय-विजय ये दो मुनिराजो ने महावीर भगवान को सन्मति नाम दिया |

सर्प बनकर संगम देव ने महावीर की परीक्षा ली |

भगवान  महावीर ने शादी नहीं की थी |

भगवान  महावीर ने 30 वर्ष की उम्र में दीक्षा ली |

भगवान महावीर ने 12 वर्ष तक तपस्या की | भगवान महावीर को 42 वर्ष में केवलज्ञान प्राप्त हुआ |

भगवान महावीर ने दीक्षा  लेते समय नम: सिद्धेभ्य: मंत्र  का उच्चारण किया था |

भगवान महावीर के 6 महीने उपवास के बाद चंदनबाला ने आहार करवाया था | चंदनबाला भगवान महावीर की मौसी थी |

महावीर भगवान केवलज्ञान होने के बाद 66 दिन  मौन रहे क्युकी गणधर नहीं थे |  

भगवान महावीर ने 72 वर्ष ने मोक्ष प्राप्त हुआ था |

महावीर भगवान के समवशरण में 14000 मुनिराज थे |

महावीर भगवान के समवशरण में 36000 माताजी थी |

महावीर भगवान को केवलज्ञान त्रजुकुला नदी के तट पर हुआ था |

महावीर भगवान के 11 गणधर थे |

महावीर भगवान पर उज्जयनी के श्मशान में स्माणुभद्र ने उपसर्ग किया था |

पार्श्वनाथ निर्वाण के 250 वर्ष बाद महावीर मोक्ष गए | 

महावीर भगवान की प्रमुख शिष्या चंदनबाला थी |

Thursday 18 August 2011

Parmeshthi


परमेष्ठी :- जो परम पद में स्थित हो उसे परमेष्ठी कहते है |

परमेष्ठी पांच होते है |  अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु |

अरिहंत परमेष्ठी :- जिन्हों ने चार घातिया कर्मो का नाश किया है,  जो केवलज्ञानी हो, जो सशरीर हो, जिनके समवशरण हो, जिनके 46 मूलगुण होते है उन्हें अरिहंत परमेष्ठी कहते है |
46 मूलगुन :-
                    10 जन्म के अतिशय 
                    10 केवलज्ञान के अतिशय 
                    14 देवकृत अतिशय 
                      8 प्रातिहार्य 
                     4 अंनत चतुष्टय

सिद्ध परमेष्ठी :- जिन्हों ने 8 कर्मो का नाश किया हो जो शरीर रहित हो, जिन्हों ने मोक्ष प्राप्त कर लिया हो, जिनके 8 मूलगुण होते है उन्हें सिद्ध परमेष्ठी कहते है |

आचार्य परमेष्ठी :- जो मुनि संघ के नायक हो, जिनके 36 मूलगुण हो उसे आचार्य परमेष्ठी कहते है |

उपाध्याय परमेष्ठी :- जो मुनि संघ में पठन पाठन करते है और कराते है, जिनके 25 मूलगुण होते है उन्हें उपाध्याय परमेष्ठी कहते है |


साधु परमेष्ठी :- जो ज्ञान, ध्यान, तप में लीन होते है, जिनके 28 मूलगुण होते है उन्हें साधु परमेष्ठी कहते है |


Thursday 11 August 2011

Rakshabandhan

भगवान मुनिसुव्रत के समय की कहानी है | उज्जैनी नगरी में राजा श्रीवर्मा राज्य करते थे | उनके बलि आदि चार मंत्री थे | उनको धर्म पे श्रद्धा नहीं थी |


एक बार उस नगरी में 700 मुनियों के संघ सहित आचार्य श्री अकम्पन का आगमन हुआ | राजा भी उनके मंत्री के साथ गए |

राजा ने मुनि को वंदन किया, पर मुनि तो ध्यान में लीन मौन थे | राजा उनकी शांति को देखकर बहुत प्रभावित हुआ, पर मंत्री कहने लगे - " महाराज ! इन जैन मुनियों को कोई ज्ञान नहीं है इसीलिए मौन रहने का ढोंग कर रहे है" |

इसप्रकार निंदा करते हुए वापिस जा रहे थे और यह बात श्रुतसागर नाम के मुनि ने सुन ली , उन्हें मुनि संघ की निंदा सहन नहीं हुई | इसलिए उन्हों ने उन मंत्री के साथ वाद-विवाद किया | मुनिराज ने उन्हें चुप कर दिया |

 राजा के सामने अपमान जानकार वह मंत्री रात में मुनि को मर ने गए , पर जैसे ही उन्हों ने तलवार उठाई उनका हाथ खड़ा ही रह गया | सुबह सब लोगो ने देखा और राजा ने उन्हें राज्य बहार कर दिया |


ये चार मंत्री हस्तिनापुर में गए | यहाँ  पद्मराय राजा राज्य करते थे | उनके भाई मुनि थे - उनका नाम विष्णुकुमार था |

सिंहरथ नाम का राजा , इस हस्तिनापुर के राजा का  शत्रु था | पद्मराय राजा उसे जीत नहीं सकता था | अंतमे बलि मंत्री की युक्ति से उसे जीत लिया था | इसलिए राजा ने मुँह माँगा माँगने को कहा , पर मंत्री ने कहा जब आवश्यकता पड़ेगी तब माँग लूँगा |

इधर अकम्पन आदि 700 मुनि भी विहार करते हुए हस्तिनापुर पहुँचे | उनको देखकर मंत्री ने उन्हें मार ने की योजना बनायीं | उन्हों राजा के पास वचन माँग लिया |

उन्हों  ने कहा - "महाराज हमें यज्ञ करना है इसलिए आप हमें सात दिन के लिए राज्य सौप दे | राजा ने राज्य सौप दिया फिर मंत्रियो ने मुनिराज के चारो और पशु, हड्डी, मांस, चमड़ी के ढेर लगा दिए फिर आग लगा दी | मुनिवरो पर घोर उपसर्ग हुआ |


यह बात विष्णुकुमार मुनि को पता चली | वह हस्तिनापुर गए और एक ब्रामण पंडित का रूप धारण कर लिया और बलि राजा के सामने उतमोतम श्लोक बोलने लगे |

बलि राजा पंडित से बहुत खुश हुआ और इच्छित वर माँगने को कहा |विष्णुकुमार ने तीन पग जमीन माँगी |

विष्णुकुमार ने विराट रूप धारण किया और एक पग सुमेरु पर्वत पर रखा और दूसरा मानुषोतर पर्वत पर रखा और बलि राजा से कहा - "बोल अब तीसरा पग कहा रखु ? तीसरा पग रखने की जगह दे नहीं तो तेरे सिर पर रखकर तुजे पाताल में उतार दूँगा" | चारो और खलबली मचगायी |

देवो और मनुष्यों ने विष्णुकुमार मुनि को विक्रिया समेटने के लिए कहा | चारो मंत्रियो ने भी क्षमा माँगी |


श्री विष्णुकुमार मुनि ने अहिंषा पूर्वक धर्मं का स्वरूप समजाया | इसप्रकार विष्णुकुमार ने 700 मुनियों की रक्षा की |हजारो श्रावक ने 700 मुनियों की वैयावृति की और बलि आदि मंत्री ने मुनिराजो से क्षमा माँगी |

जिसदिन यह घटना घटी , उसदिन श्रावण सुदी पूर्णिमा थी | विष्णुकुमार ने 700 मुनियों का उपसर्ग दूर हुआ और उनकी रक्षा हुई , अतः वह दिन रक्षा पर्व के नाम से प्रसिद्ध हुआ | आज भी यह दिन रक्षाबंधन पर्व के नाम से मनाया जाता है |

वास्तव में कर्मो से न बंधकर स्वरूप की रक्षा करना ही  ' रक्षा-बंधन ' है |