Friday 5 August 2011

Indriy

 इन्द्रिय :- संसारी आत्मा के बाह्य चिन्ह को इन्द्रिय कहते है | 

 इन्द्रिय  5 होती है | स्पर्शन  इन्द्रिय, रसना  इन्द्रिय, घ्राण  इन्द्रिय, चक्षु  इन्द्रिय, कर्ण  इन्द्रिय |

स्पर्शन  इन्द्रिय :- जिससे हल्का, भारी, ढंडा, गरम, कड़ा, नरम, रुखा, चिकना, आदि का ज्ञान हो उसे स्पर्शन  इन्द्रिय कहते है | पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु , वनस्पति के एक स्पर्शन  इन्द्रिय होती है |

रसना  इन्द्रिय :- जिससे खट्टा, मीठा, कडवा, कषायला, चरपरा आदि का ज्ञान हो उसे रसना  इन्द्रिय  कहते है |लट, कृमि, केचुआ  के   स्पर्शन, रसना  दो इन्द्रिय होती है |

घ्राण  इन्द्रिय :- जिससे सुगंध व दुर्गध का ज्ञान हो उसे रसना  इन्द्रिय  कहते है | चीटी, जूं, मकोड़ा आदि  के स्पर्शन, रसना, घ्राण तीन  इन्द्रिय  होती है |

चक्षु  इन्द्रिय  :- जिससे काला, नीला, लाला, हरा, सफेद, आदि रंगों का ज्ञान हो उसे चक्षु  इन्द्रिय कहते है | भौंरा, तितली, मच्छर, मक्खी आदि  के स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु चार इन्द्रिय होती है |

कर्ण  इन्द्रिय :- जिससे सा, रे, गा, म, प, ध, नि आदि स्वरों का ज्ञान हो उसे कर्ण इन्द्रिय कहते है | मनुष्य, देव, नरकी, गाय, हाथी, घोडा आदि के के स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण पाच इन्द्रिय होती है |

पंचेन्द्रिय के २ भेद है | (१) सैनी  (२) असैनि |

सैनी :- मन सहित जीव को सैनी कहते है |  मनुष्य, देव, नरकी, गाय, हाथी, घोडा आदि |
असैनि :- मन रहित जीव को असैनि कहते है | जल सर्प , कोई कोई तोतो आदि |

विकलत्रय :- दो इन्द्रिय से लेकर चार इन्द्रिय के जीव विकलत्रय कहलाते है | 






1 comment: