Thursday 11 August 2011

Rakshabandhan

भगवान मुनिसुव्रत के समय की कहानी है | उज्जैनी नगरी में राजा श्रीवर्मा राज्य करते थे | उनके बलि आदि चार मंत्री थे | उनको धर्म पे श्रद्धा नहीं थी |


एक बार उस नगरी में 700 मुनियों के संघ सहित आचार्य श्री अकम्पन का आगमन हुआ | राजा भी उनके मंत्री के साथ गए |

राजा ने मुनि को वंदन किया, पर मुनि तो ध्यान में लीन मौन थे | राजा उनकी शांति को देखकर बहुत प्रभावित हुआ, पर मंत्री कहने लगे - " महाराज ! इन जैन मुनियों को कोई ज्ञान नहीं है इसीलिए मौन रहने का ढोंग कर रहे है" |

इसप्रकार निंदा करते हुए वापिस जा रहे थे और यह बात श्रुतसागर नाम के मुनि ने सुन ली , उन्हें मुनि संघ की निंदा सहन नहीं हुई | इसलिए उन्हों ने उन मंत्री के साथ वाद-विवाद किया | मुनिराज ने उन्हें चुप कर दिया |

 राजा के सामने अपमान जानकार वह मंत्री रात में मुनि को मर ने गए , पर जैसे ही उन्हों ने तलवार उठाई उनका हाथ खड़ा ही रह गया | सुबह सब लोगो ने देखा और राजा ने उन्हें राज्य बहार कर दिया |


ये चार मंत्री हस्तिनापुर में गए | यहाँ  पद्मराय राजा राज्य करते थे | उनके भाई मुनि थे - उनका नाम विष्णुकुमार था |

सिंहरथ नाम का राजा , इस हस्तिनापुर के राजा का  शत्रु था | पद्मराय राजा उसे जीत नहीं सकता था | अंतमे बलि मंत्री की युक्ति से उसे जीत लिया था | इसलिए राजा ने मुँह माँगा माँगने को कहा , पर मंत्री ने कहा जब आवश्यकता पड़ेगी तब माँग लूँगा |

इधर अकम्पन आदि 700 मुनि भी विहार करते हुए हस्तिनापुर पहुँचे | उनको देखकर मंत्री ने उन्हें मार ने की योजना बनायीं | उन्हों राजा के पास वचन माँग लिया |

उन्हों  ने कहा - "महाराज हमें यज्ञ करना है इसलिए आप हमें सात दिन के लिए राज्य सौप दे | राजा ने राज्य सौप दिया फिर मंत्रियो ने मुनिराज के चारो और पशु, हड्डी, मांस, चमड़ी के ढेर लगा दिए फिर आग लगा दी | मुनिवरो पर घोर उपसर्ग हुआ |


यह बात विष्णुकुमार मुनि को पता चली | वह हस्तिनापुर गए और एक ब्रामण पंडित का रूप धारण कर लिया और बलि राजा के सामने उतमोतम श्लोक बोलने लगे |

बलि राजा पंडित से बहुत खुश हुआ और इच्छित वर माँगने को कहा |विष्णुकुमार ने तीन पग जमीन माँगी |

विष्णुकुमार ने विराट रूप धारण किया और एक पग सुमेरु पर्वत पर रखा और दूसरा मानुषोतर पर्वत पर रखा और बलि राजा से कहा - "बोल अब तीसरा पग कहा रखु ? तीसरा पग रखने की जगह दे नहीं तो तेरे सिर पर रखकर तुजे पाताल में उतार दूँगा" | चारो और खलबली मचगायी |

देवो और मनुष्यों ने विष्णुकुमार मुनि को विक्रिया समेटने के लिए कहा | चारो मंत्रियो ने भी क्षमा माँगी |


श्री विष्णुकुमार मुनि ने अहिंषा पूर्वक धर्मं का स्वरूप समजाया | इसप्रकार विष्णुकुमार ने 700 मुनियों की रक्षा की |हजारो श्रावक ने 700 मुनियों की वैयावृति की और बलि आदि मंत्री ने मुनिराजो से क्षमा माँगी |

जिसदिन यह घटना घटी , उसदिन श्रावण सुदी पूर्णिमा थी | विष्णुकुमार ने 700 मुनियों का उपसर्ग दूर हुआ और उनकी रक्षा हुई , अतः वह दिन रक्षा पर्व के नाम से प्रसिद्ध हुआ | आज भी यह दिन रक्षाबंधन पर्व के नाम से मनाया जाता है |

वास्तव में कर्मो से न बंधकर स्वरूप की रक्षा करना ही  ' रक्षा-बंधन ' है |








2 comments:

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